गुरुवार, 29 जून 2017

बता दिया राज़ खोल के देखा


बता दिया राज़ खोल के देखा
ऐसी मैं कोई किताब तो नही
दिल  से  सुनते  तो  सुनाई  देती
कान खामोशियो की चीखें सुनते नही

युही रूठना युही मान जाना
यू मोहब्बत करना हम आता नहीं
आज इस पे गया कल उस पे
ये दिल है कोई निगाह नही

जख्मी होकर है कदरदान तेरे वार के
तेरी नज़रो ने कायल किया घायल नही
तुझसे आगे भी होगी दुनिया बेशक
जो संग तुम नही तो वहाँ हम भी नही

करके बेआबरू खुद ही मोहब्बत को
समझते मुझे की वफ़ा करना आता नही
तू ना सीखा सलीका-ए मोहब्बत मुझको
ये तुझे आता तो मैं बेवफा होता नही

और क्या के क्या कर सकते हो मेरे लिए
ये भी पूछोगे अगर मैं कुछ करा जताता नही
तुम भी रहे बेक़रार मोहब्बत को
हमने बस इज़हार किया इश्क़ कबूला तुमने ही

मज़ाक भी ना कर किसी और के होने का
मैं भी गया तो लोटके आना नही
कहते वो भूल जाओ हमे समझाये उन्हें
मोहब्बत में करते ऐसा मज़ाक नही

ना पूछो हमसे उनकी आलम-ए-बेवफ़ाई
वो मिले तो कम्भख्त नज़र भी चुराता नही
के तू खूब कर गलती विशाल
इससे अच्छा सुधरने का कोई रास्ता नही

रविवार, 11 जून 2017

मेरे लफ्ज़ बेशर्म


मेरे लफ्ज़ मुझसे भी बेशर्म हैं
चलते चलते, जब कभी
थक जाती हूँ,
वक़्त की गिरहें
जब सुलझते नहीं सुलझती हैं
सांसों में भी जब शिकन पड़ने लगती है
और माथे पर सिलवटें उतरने लगती हैं
निगाहें जब कभी खुश्क सी हो जाती हैं
और मुस्कराहट डूबने सी लगती है

या जब कभी,
चाँद करवटों के बहाने से मुंह फ़ेरने लगता है
और सड़क के किनारे पर पड़ा, एक पत्थर
थोड़ा और नुकीला लगने लगता है
लहू का रंग जब और गहराने लगता है
धडकनें जब धीमी पड़ने लगती हैं
और नाराज़ी परवान चढ़ने लगती है

तब-तब
मैं लफ़्ज़ों के साथ चीर-फाड़ करती हूँ
उनकी खाल तक उधेड़ देती हूँ
बेशर्मी की सारी हदें तोड़ कर
उन्हें नग्न कर
कागजों में भीतर तक गोद देती हूँ !

जबरन उन्हें नोंचती हूँ, लहुलुहान कर देती हूँ
अपना गुस्सा या अपना दर्द या अपने आंसू
सब उन में गाड़ देती हूँ
और अंत में,
अपना सारा बोझ इन लफ़्ज़ों के
के बाजुओं पर लाद कर
बड़े ही इत्मीनान से
बिस्तर का एक कोना पकड़ कर
नींद के आगोश में समां जाती हूँ
और मेरे वो लफ्ज़ मेरे वो शब्द
कागज़ रुपी मृत्युशय्या पर पड़े पड़े
कराहते हैं !!

आवाज़ देते हैं
लेकिन मैं बड़ी ही बेशर्मायी से
उन्हें नज़र अन्दाज़ कर देती हूँ !
इतना सब करने पर भी
वो मुझसे रूठते नहीं हैं
मेरे लफ्ज़ मेरे शब्द
मुझसे भी बेशर्म हैं !



                                                                                                                                        








                                                                                           By - Sia

रविवार, 22 जनवरी 2017

khuli kitab: उन शहीदो के अपनो के नाम

khuli kitab: उन शहीदो के अपनो के नाम: उन अमर शहिदो कि तो , सबने करदि तारिफ   । जिन्होने इस देश पे अपनी , जान करदि वारित   । पर भूल गए उनके उन अपनो को , जो तिल-तिल मरते जा...

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

अल्फाज 1


मैंने देखा फिर उसने देखा और निगाहें टकराई
वो हुसन के नशे मे इत्फाक को इश्क समझ बैठे 
Maine dekha fir usne dekha or nigahe takrai
Wo husen k nashe m itafaq ko ishq samajh baithe


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बस पहली मुलाकात मे उन्होंने बेवफा बना दिया
ना जाने अन्जाम-ए-खिताब क्या होता उनसे मोहब्बत का


Bus pehli mulakat m unhone bewafa bana diya
Na jane anjame-a-khitab kya hota unse mohabbat ka


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जमाने ने हमारी तो की तोहमत सरेबाजार तुम्हें देखने की
कोई खुदा से भी पूछे क्यों तराशा इतना तुझे 
Jamane ne hamari to ki tohmat sarebazar tumhe dekhne ki
Koi khuda se bhi puche kyu trasa itna tujhe 

अल्फाज 2


सीखा मोतियो ने बनना माला बंधके धागो मे
तु शामिल ही करले हमें अपने दागो मे
मयखाने झूमे जब देखें तेरी आँखों मे
तु बरसादे मोहब्बत मुझपे इन भादौ मे 

Sikha motiyo ne banna mala bandhke dhago m
Tu shamil hi kerle hume apne daago m
Meykhane jhume jab dekhe teri aankho m
Tu bersade mohabbat mujhpe in bhado m


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क्या बताऊ अदा उस कातिल की
जो आया था घायल करने
पर घाव ऐसा दिया के अपना कायल कर गया 

Kya batau ada use katil ki
Jo aaya tha ghayal krne
Pr ghaav aesa diya k apna kayal kr gya  

अल्फाज 3


नाम बनाता हैं जहाँ नौजवानों के
हाल बदनामो के दिखाकर
और वो हमसे कहते
तुम किसी के काम ना आ सके

Naam banata h jha nojavano k
Halle badnamo k dikhakr
Or wo humse kahte
Tum kisi k kaam na aa sake
 
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बहाना डुहनडते है बदनाम करने का लोग
हम मयखाने से क्या गुजरे उन्होने शराबी बना दिया
Bhana dhundte h badnaam krne ka loge
Hum meykhane se kya guazre unhone shrabi bna diya

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तु खूब कर गलती ए गालिब
के इससे अच्छा सुधरने का कोई रास्ता नही

Tu khub kr galti a galib
K isese accha sudhrne ka koi rasta nhi

सोमवार, 9 जनवरी 2017

अल्फाज 4


एक हंसी डहलती शाम थी
शमा चिलमन के साथ थी
पुरानी शराब थी शायरी जुबान थी
मंद-मंद बह रहा सुर साज था
मै फिर याद कर रहा
उन्हें भूलने का जो ख्याल था

Ek hansi dhalti shaam thi
Shama chilman k sath thi
Purani sharab thi shayri juban thi
Mand-mand beh raha sure saaje tha
Mai fir yaad kr rha
Unhe bhulne ka jo khayal tha



"दोस्त मेरे कहते, उसके आगे भी एक दुनिया है
मैने कहाँ दुनिया जरूर होगी, पर उसमे तुम्हारा दोस्त नही "

Dost mere kehte, uske aage bhi ek duniya h
Maine kha duniya jarur hogi, par usme tumhara dost nhi